Wednesday 26 September 2018

PLANT HORMONE

Auxin
This hormone is present in the seed embryo, young leaves, and apical buds' meristem.

Functions of Auxins
  • Auxins are hormones produced in immature parts of plants that stimulate growth.
  • Stimulation of cell elongation, cell division in cambium, differentiation of phloem and xylem, root initiation on stem cuttings, lateral root development in tissue culture
  • Delaying leaf senescence
  • Suppression of lateral bud growth when supplied from apical buds
  • Inhibition or promotion of fruit and leaf abscission through ethylene stimulation
  • Fruit setting and growth induced through auxin in some plants
  • Auxin can delay fruit ripening
  • In Bromeliads, the auxin hormone promotes flowering
  • Stimulation of flower parts, femaleness of dioecious flowers, and production of high concentration of ethylene in flowering plants
Cytokinin
They are synthesized in roots and then transported to other parts of the plant.

Functions of Cytokinins
  • Stimulation of cell division, growth of lateral buds, and apical dominance
  • Stimulation of shoot initiation and bud formation in tissue culture
  • Leaf cell enlargement that stimulates leaf expansion
  • Enhancement of stomatal opening in some plant species
  • Etioplasts converted into chloroplasts through stimulation of chlorophyll synthesis.
Ethylene
Ethylene is present in the tissues of ripening fruits, nodes of stems, senescent leaves, and flowers.

Functions of Ethylene
  • Leads to release of dormancy state
  • Stimulates shoot and root growth along with differentiation
  • Leaf and fruit abscission
  • Flower induction in Bromeliad
  • Stimulation of femaleness of dioecious flowers
  • Flower opening is stimulated
  • Flower and leaf senescence stimulation
  • Stimulation of Fruit ripening
Abscisic Acid
Abscisic acid is found mostly near leaves, stems, and unripe fruit.

Functions of Abscisic Acid
  • Stimulation of closing of stomata
  • Inhibition of shoot growth
  • Inducing seeds for synthesizing storage of proteins
Gibberellin
Gibberellins are present in the meristems of apical buds and roots, young leaves, and embryo.

Functions of Gibberellins
  • Stimulates stem elongation
  • Leads to development of seedless fruits
  • Delays senescence in leaves and citrus fruits
  • Ends seed dormancy in plants that require light for induction of germination

Monday 24 September 2018

पादप हार्मोन्स (plant hormones)

पादप हार्मोन्स (plant hormones):
पौधों की जैविक क्रियाओं के मध्य रासायनिक समन्वयन पाया जाता है। इन रसायनों को पादप हार्मोन्स (plant hormones) कहते हैं। पादप हार्मोन्स विशेष प्रकार के जटिल कार्बनिक रासायनिक पदार्थ है जो विभिन्न जैविक क्रियाओं का नियन्त्रण एवं नियमन करते है, जैसे - वृद्धि, पतझड़, पुष्पन, फल निर्माण फलों का परिपक्व होना प्रसूति, अनुवर्तन गतियाँ आदि। पादप हॉमोंन्स के निम्नलिखित पाँच समूहों में बाँटा जा सकता है-
(क) आक्सिन
(ख) जिबरेलिन्स
(ग) साइटोकाइनिन्स
(घ) ऐबसीसिकअम्ल ( वृद्धिरोधक )
(ङ) एथिलीन गैंस|
1. आँक्सिन (Auxins):
वे पदार्थ है जो प्ररोह की कोशिकाओं में दीर्घीकरण (elongation) प्रक्रिया को प्रेरित करते हैं। इसके अतिरिक्त आँक्सिन अनेक क्रियाओं को भी प्रभावित करते हैं। अब प्राकृतिक रूप में पौधे के अन्दर मिलने वाले आँविसन्स के अतिरिक्त समान व्यवहार व रासायनिक संरचना वाले संश्लेषित पदार्थ ज्ञात है, जिनका कृत्रिम रूप से उपयोग किया जा सकता हैं।
आक्सिन का उपयोग (Application of Auxins):
(1) वृद्धि दर (growth rate) पर प्रभाव डालते है, क्योंकि ये कोशिकीय दीर्घीकरण (elongation) को प्रेरित करके वृद्धि-दर पर प्रभाव डालते हैं।
(2) अनुवर्तन गति (tropic movements) - प्रकाश, गुरुत्वाकर्षण आदि के प्रभाव से जड़ व तनों में होने वाली अनुवर्तन क्रियाएँ आकिस्न्स की सान्द्रता से नियन्त्रित होती हैं। आक्सिन की सान्द्रता तने में वृद्धि दर को प्रेरित करती है और जड़ में वृद्धि का संदमन करती है|
(3) शीर्ष प्रमुखता या प्रभाविता (Apical dominance) - तने के शीर्ष पर उपस्थित वर्धी कलिका से बनने वाले पादप हॉर्मोन कक्षस्थ कलिकाओं की वृद्धि को बाधित करते हैं। "शीर्ष कलिका को काटकर हटा देने से पाशव्रीय कलिकाएँ शीघ्रता से वृद्धि करने लगती हैं।
(4) ऊतक विभेदन के लिए आँक्सिन्स का उपयोग बागवानी में किया जाता है, उदाहरण के लिए - लगाई जाने वाली कलम को यदि आंक्सिन के घोल में पहले से ही डूबा लिया जाए तो उसमें जड़े शीघ्र व अधिक निकलती हैं।
(5) अनिषेकफलन (parthenocarpy) के लिए आँक्सिन्स को पुष्पन के पश्चात् पौधों पर छिडका जाता है|  अनिषेकफल (parthenocarpic fruits) बीजरहित (seedless) होते है क्योंकि इनका निर्माण बिना निषेचन के होता है।
(6) पतियों, फलों आदि का विलगन (abscission) रोकने के लिए आक्सिन्स का उपयोग किया जाता है।
(7) अपतण निवारण (weed killing) के लिए 2-4D जैसे आंविसन्स का उपयोग किया जाता है। इससे एकबीजपत्री फसल से द्विबीज़पत्री जंगली पादप नष्ट किए जा सकते हैं।
(8) प्रसुप्तावस्था में प्रभाव (effect in dormancy) - आक्सिन्स कलिकाओं की वृद्धि में अवरोध उत्पन्न करते है अत: आलू आदि के समय के संचय के समय इनका उपयोग लाभकारी है।
इस प्रकार कृषि, बागवानी, उद्यान विज्ञान आदि में आक्सिन्स का प्रयोग अनेक प्रकार से उपयोगी है।
2. जिबरेलिन्स (Gibberellins) :
जिबरेलिन्स की खोज कुरोसावा (Kurosawa) नामक वैज्ञानिक ने सन् 1926 ई. में की थी।
याबुता तथा सूमिकी (Yabuta and Sumiki) ने इसे जिबरेला फूजीकुरोई (Gibberella fujikuroi) नामक कवक से प्राप्त किया था। इनके प्रभाव से तने के पर्व (internodes) लम्बे होते हैं।
उपयोग (Application) :
जिबरेलिंस निम्नलिखित जैविक क्रियाओं को प्रभावित करते हैं-
(1) कोशिका दीर्घीकरण (cell elongation) को प्रेरित करते हैं।
(2) अनिषेकफलन (parthenocarpy) - बिना निषेचन के ही अणडाशय से बीजरहित फल का विकास हो जाता हैं।
(3) कैम्बियम की सक्रियता को बढ़ा देते है जिससे पौधे की मोटाई में वृद्धि होती हैं।
(4) बोल्टिग प्रभाव (Bolting effect) - इसके द्वारा द्विवर्षी पौधे एकवर्षी हो जाते हैं। आनुवंशिक रूप से नाटे पौधे लम्बे हो जाते हैं।
(5) प्रसुप्ति (dormancy) भंग करना तथा बीजों में अंकुरण को बढाना।
(6) अंगूरों का आकार एवं गुच्छों की लम्बाई बढ़ाने में भी जिबरेलिन्स प्रयोग में लाए जाते हैं।
(7) पुष्प एवं फलों के विकास में जिबरेलिन्स सहायक होते हैं।
3. साइटोकाइनिन्स (Cytokinins) :
पौधों में ऐसे महत्वपूर्ण यौगिक पाए जाते है जो कोशिका विभाजन को प्रेरित करते हैं। इनमें सबसे प्रमुख पदार्थ काइनेटिन (kinetin) समझा जाता है। अब तो ऐसे पदार्थ ज्ञात हो चुके है जो काइनेटिन की तरह न्यूक्लिक अम्लों के अपघटन से बनते है तथा काइनेटिन समूह के ही यौगिक होते हैं। इस समूह के पदार्थों को ही जो काइनेटिन की तरह कार्य करने है, साइटोकाइनिन्स (cytokinins) कहा जाता है। काइनेटिन तथा जिएटिन (zeatin) नामक रसायन साइटोकाइनिन्स का कार्य करते हैं! साइटोंकाइनिन्स प्राकृतिक रूप से आक्सिन के साथ मिलकर उत्तक विभेदन को प्रभावित करते हैं।
4. ऐबसीसिक अम्ल  (वृद्धिरोधक) (growth Inhibitors) :
ये आँक्सिन तथा जिबरेलिन्स के प्रभाव को नष्ट या अवरोधित करते हैं। ये वृद्धि का संदमन करते हैं। पौधों में प्रसुप्तावस्था (dormancy) तथा जीर्णावस्था को प्रेरित करते हैं; जैसे ऐबसीसिक अम्ल या टरपोलाइनिक अम्ल (terpolinec aicd)। कुछ वृद्धिरोधक जैसे सोलेनिडीन (solanidine) आलू के कन्दों में कलिकाओं के प्रस्फुटन को रोकता हैं।
5. एथिलीन (Ethylene) :

यह एक गैसीय पादप हार्मोन है जो सामान्यतया वृद्धिरोधक का कार्य करता हैं। यह पौधों में पुष्पन को प्राय कम करता हैं। यह अनन्नास (pineapple) में पुष्पन को तीव्र करता हैं। यह विगलन को प्रेरित करने वाला हॉर्मोन हैं। यह मुख्य रूप से फलों को पकाने में सहायक होता हैं।
1 यह सामान्यतया पुष्पन का संदमन करती है, लेकिन अनन्नास (pineapple) में पुष्पन को प्रेरित करती हैं।
एथिलीन फलों को पकाने में सहायक गैस हार्मोन्स हैं।

ENDOCRINE SYSTEM AND HUMAN HORMONE

Structures of the Endocrine System




The endocrine system consists of cells, tissues, and organs that secrete hormones as a primary or secondary function. The endocrine gland is the major player in this system. The primary function of these ductless glands is to secrete their hormones directly into the surrounding fluid. The interstitial fluid and the blood vessels then transport the hormones throughout the body. The endocrine system includes the pituitary, thyroid, parathyroid, adrenal, and pineal glands . Some of these glands have both endocrine and non-endocrine functions. For example, the pancreas contains cells that function in digestion as well as cells that secrete the hormones insulin and glucagon, which regulate blood glucose levels. The hypothalamus, thymus, heart, kidneys, stomach, small intestine, liver, skin, female ovaries, and male testes are other organs that contain cells with endocrine function. Moreover, adipose tissue has long been known to produce hormones, and recent research has revealed that even bone tissue has endocrine functions.
This diagram shows the endocrine glands and cells that are located throughout the body. The endocrine system organs include the pineal gland and pituitary gland in the brain. The pituitary is located on the anterior side of the thalamus while the pineal gland is located on the posterior side of the thalamus. The thyroid gland is a butterfly-shaped gland that wraps around the trachea within the neck. Four small, disc-shaped parathyroid glands are embedded into the posterior side of the thyroid. The adrenal glands are located on top of the kidneys. The pancreas is located at the center of the abdomen. In females, the two ovaries are connected to the uterus by two long, curved, tubes in the pelvic region. In males, the two testes are located in the scrotum below the penis.
The ductless endocrine glands are not to be confused with the body’s exocrine system, whose glands release their secretions through ducts. Examples of exocrine glands include the sebaceous and sweat glands of the skin. As just noted, the pancreas also has an exocrine function: most of its cells secrete pancreatic juice through the pancreatic and accessory ducts to the lumen of the small intestine.
Question 1 : Compare and contrast endocrine and exocrine glands.
Answer : Endocrine glands are ductless. They release their secretion into the surrounding fluid, from which it enters the bloodstream or lymph to travel to distant cells. Moreover, the secretions of endocrine glands are hormones. Exocrine glands release their secretions through a duct that delivers the secretion to the target location. Moreover, the secretions of exocrine glands are not hormones, but compounds that have an immediate physiologic function. For example, pancreatic juice contains enzymes that help digest food.
Question 2: Diffrenciate between endocrine system and nervos system.
answer:


Endocrine and Nervous Systems (Table 1)
Endocrine system
Nervous system
Signaling mechanism(s)
Chemical
Chemical/electrical
Primary chemical signal
Hormones
Neurotransmitters
Distance traveled
Long or short
Always short
Response time
Fast or slow
Always fast
Environment targeted
Internal
Internal and external




Question 3 : Describe several main differences in the communication methods used by the endocrine system and the nervous system.

Answer: The endocrine system uses chemical signals called hormones to convey information from one part of the body to a distant part of the body. Hormones are released from the endocrine cell into the extracellular environment, but then travel in the bloodstream to target tissues. This communication and response can take seconds to days. In contrast, neurons transmit electrical signals along their axons. At the axon terminal, the electrical signal prompts the release of a chemical signal called a neurotransmitter that carries the message across the synaptic cleft to elicit a response in the neighboring cell. This method of communication is nearly instantaneous, of very brief duration, and is highly specific.

Hormone


secretion of an endocrine organ that travels via the bloodstream or lymphatics to induce a response in target cells or tissues in another part of the body.

Endocrine Glands and Their Major Hormones (Table 2)
Endocrine glandAssociated hormonesChemical classEffect
Pituitary (anterior)Growth hormone (GH)ProteinPromotes growth of body tissues
Pituitary (anterior)Prolactin (PRL)PeptidePromotes milk production
Pituitary (anterior)Thyroid-stimulating hormone (TSH)GlycoproteinStimulates thyroid hormone release
Pituitary (anterior)Adrenocorticotropic hormone (ACTH)PeptideStimulates hormone release by adrenal cortex
Pituitary (anterior)Follicle-stimulating hormone (FSH)GlycoproteinStimulates gamete production
Pituitary (anterior)Luteinizing hormone (LH)GlycoproteinStimulates androgen production by gonads
Pituitary (posterior)Antidiuretic hormone (ADH)PeptideStimulates water reabsorption by kidneys
Pituitary (posterior)OxytocinPeptideStimulates uterine contractions during childbirth
ThyroidThyroxine (T4), triiodothyronine (T3)AmineStimulate basal metabolic rate
ThyroidCalcitoninPeptideReduces blood Ca2+ levels
ParathyroidParathyroid hormone (PTH)PeptideIncreases blood Ca2+ levels
Adrenal (cortex)AldosteroneSteroidIncreases blood Na+ levels
Adrenal (cortex)Cortisol, corticosterone, cortisoneSteroidIncrease blood glucose levels
Adrenal (medulla)Epinephrine, norepinephrineAmineStimulate fight-or-flight response
PinealMelatoninAmineRegulates sleep cycles
PancreasInsulinProteinReduces blood glucose levels
PancreasGlucagonProteinIncreases blood glucose levels
TestesTestosteroneSteroidStimulates development of male secondary sex characteristics and sperm production
OvariesEstrogens and progesteroneSteroidStimulate development of female secondary sex characteristics and prepare the body for childbirth

Friday 21 September 2018

जीवन की मौलिक इकाई


जीवन की मौलिक इकाई
 कोशिका : शरीर की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई को कोशिका कहते हैं
·         यह सभी सजीवों की मुलभुत इकाई है |
·         सभी सजीव कोशिका से बने हैं |
·         जैसे - एक भवन को बनाने के लिए ईंट (brick) संरचनात्मक इकाई का काम करता है थी उसी प्रकार किसी भी सजीव के शरीर निर्माण भी एक एक कोशिका को जोड़कर होता है |  
कोशिकाएँ (Cells)
उत्तक (Tissues) 
अंग (Organs)
शारीरक तंत्र (Body system)
शरीर (Body)
कोशिका एक संरचनात्मक इकाई है :
कोशिका हमारे शरीर को आकार प्रदान करता है इसलिए यह शरीर का संरचनात्मक इकाई है
कोशिका एक क्रियात्मक इकाई है :शरीर के सभी कार्य कोशिकीय स्तर पर होते है इसलिए यह शरीर का क्रियात्मक इकाई है
कोशिका की खोज : कोशिका का सबसे पहले पता राबर्ट हुक ने 1665 में लगाया था | राबर्ट ब्राउन ने 1831 में कोशिका में केन्द्रक का पता लगाया
कोशिका सिद्धांत : सभी पौधे तथा जंतु कोशिकाओं से बने हैं और वे जीवन की मुलभूत इकाई है | सभी कोशिकाएँ पूर्ववर्ती कोशिकाओं से बनती हैं | इस सिद्धांत को सर्व प्रथम दो जीव वैज्ञानिक एम. स्लीडन (1833) तथा टी. स्वान (1839) ने बताया
कोशिकीय आधार पर जीवों का प्रकार: 
कोशिकीय आधार पर जीव दो प्रकार के होते हैं -
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(A) एककोशिकीय जीव : वे जीव जो एक ही कोशिका के बने होते हैं एवं स्वयं में ही एक सम्पूर्ण जीव होते है एक कोशिकीय जीव कहलाते हैं | जैसे- अमीबा, पैरामिशियम, क्लेमिड़ोमोनास और बैक्टीरिया (जीवाणु) आदि |

(B) बहुकोशिकीय जीव : वे जीव जिनमें अनेक कोशिकाएँ समाहित होकर विभिन्न कार्य को सम्पन्न करने हेतु विभिन्न अंगो का निर्माण करते है, बहुकोशिकीय जीव कहलाते है जैसे- फंजाई (कवक) पादप, मनुष्य एवं अन्य जन्तु आदि |
* प्रत्येक बहु कोशिकीय जीव एक कोशिकीय जीवों से ही विकसित हुआ है
* कोशिकाएँ विभाजित होकर अपनी जैसी कोशिकाएँ बनाती हैं
* इस प्रकार सभी कोशिकाएँ अपनी पूर्ववर्ती कोशिकाओं से उत्पन्न होती है |
* बहुकोशिकीय जीवों में श्रम विभाजन होता है अर्थात शरीर के विभिन्न अंग में कार्य करने के लिए विभिन्न एक विशिष्ट कोशिकाएँ होती हैं
कोशिकाओं की आकृति तथा आकार उनके विशिष्ट कार्यों के अनुरूप होते हैं :
(i) कुछ कोशिकाएँ अपनी आकार बदलती रहती हैं - जैसे : अमीबा 
(ii) कुछ जीवों में कोशिका का आकार स्थिर रहता है - जैसे : तंत्रिका कोशिका
मानव शरीर में पाए जाने वाले कुछ कोशिकाओं का नाम :

(i) तंत्रिका कोशिका (Nerve cell) 
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(ii) रुधिर कोशिका (Blood cell)
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(iii) वसा कोशिका (Fat cell) 
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(iv) अस्थि कोशिका (Bone cell) 
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(v) चिकनी पेशी कोशिका (Muscular Cell)
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(vi) जनन कोशिका: (Reproductive Cell)
      (a) शुक्राणु (sperm)
      (b) अंडाणु (Ovum)
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पादप कोशिका और जन्तु कोशिका में अंतर
पादप कोशिका  
1. इसमें कोशिका भित्ती होती है ।
2. इसमें हरित लवक उपस्थित होते है ।
3. इनमें प्रकाश संश्लेषण होता हैं ।
4. ये प्रायः बड़े आकार की होती हैं ।
जन्तु कोशिका
1. इसमें कोशिका भित्ती नही होती हैं ।
2. इसमें हरित लवक अनुपस्थित होते हैं ।
3. इनमे प्रकाश संश्लेषण नही होता हैं ।
4. ये प्रायः छोटे आकार की होती हैं । 

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 कोशिका के भाग (Parts Of Cell):

(i) प्लाज्मा झिल्ली (Plasma Membrane) : यह कोशिका की सबसे बाहरी परत है जो कोशिका के घटकों को बाहरी पर्यावरण से अलग करती है | प्लाज्मा झिल्ली लचीली होती है और कार्बनिक अणुओं जैसे लिपिड (phospolipids) तथा प्रोटीन के दो परतों से बनी होती है |
कोशिका झिल्ली का लचीलापन:  कोशिका झिल्ली का लचीलापन एक कोशिकीय जीव जैसे अमीबा को अपने बाह्य पर्यावरण से अपना भोजन या अन्य पदार्थ ग्रहण करने में सहायता करता है | इसी लचीलापन के कारण अमीबा अपना आकार बदल पाता है और खाद्य पदार्थ को कुटपाद के सहारे निगल जाता है | अमीबा या अन्य एककोशिकीय जीवों में भोजन ग्रहण करने की इस प्रक्रिया को इंडोसाइटोसिस अथवा फैगोसाइटोसिस कहते है
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कार्य: 
(i) यह कोशिका द्रव्य को बाहरी पर्यावरण से अलग करता है
(ii) यह कोशिका की बाहरी तत्वों से रक्षा करता है
(iii) कुछ चुने हुए पदार्थो का कोशिका के अंदर या बाहर आने-जाने की क्रिया प्लाज्मा झिल्ली के द्वारा ही होता है | जबकि अन्य पदार्थों की गति को रोकती है
(iv) विसरण एवं परासरण की क्रिया इसी झिल्ली के द्वारा होता है
प्लाज्मा झिल्ली वर्णात्मक पारगम्य झिल्ली होती है : 
प्लाज्मा झिल्ली कुछ चुने हुए पदार्थों को ही अंदर अथवा बाहर जाने देती है तथा अन्य पदार्थो की गति को रोकती है | इसलिए कोशिका झिल्ली को वर्णात्मक पारगम्य झिल्ली भी कहते हैं
कुछ चुने हुए पदार्थ जैसे - कार्बन डाइऑक्साइड अथवा ऑक्सीजन कोशिका झिल्ली के आर-पार विसरण प्रक्रिया द्वारा आ-जा सकते है
पदार्थों की गति का नियम: पदार्थों की गति उच्च सांद्रता से निम्न सांद्रता की ओर होती है
विसरण (Diffusion) :  विसरण एक कोशिकाओं में होने वाली प्रक्रिया है जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड एवं ऑक्सीजन जैसे गैसीय पदार्थों के अणुओं का परिवहन वर्णात्मक पारगम्य झिल्ली के द्वारा होता है |  यह प्रक्रिया विसरण कहलाती है
कोशिकाओं में विसरण की प्रक्रिया: CO2 जैसे कोशिकीय अपशिष्ट जब कोशिका में अधिक मात्रा में इक्कठा हो जाती है तो उसकी सांद्रता (concentration) बढ़ जाता है | कोशिका के बाह्य पर्यावरण  में CO2 की सांद्रता कोशिका के अंदर की अपेक्षा कम होती है | जैसे ही कोशिका के अंदर और बाहर CO2 की सांद्रता में अंतर आता है उसी समय उच्च सांद्रता से निम्न सांद्रता की ओर विसरण की प्रक्रिया द्वारा कोशिका से CO2 बाहर निकल जाती है इसी प्रकार कोशिका में ऑक्सीजन O2 की सांद्रता कम हो जाती है और बाहर ऑक्सीजन O2 की सांद्रता बढ़ जाती है तो बाहर से O2 कोशिका में अंदर वर्णात्मक पारगम्य झिल्ली से विसरण की प्रक्रिया द्वारा कोशिका के अंदर चली जाती है | इस प्रकार कोशिका तथा बाह्य पर्यावरण में गैसों का आदान-प्रदान विसरण की प्रक्रिया द्वारा होता है
परासरण (Osmosis): जल के अणुओं की गति वर्णात्मक पारगम्य झिल्ली द्वारा हो तो उसे परासरण कहते हैं
जिस प्रकार गैसों का आदान-प्रदान विसरण की प्रक्रिया द्वारा होता है | ठीक उसी नियम का पालन परासरण में भी होता है | परासरण में जल के अणुओं की गति भी वर्णात्मक पारगम्य झिल्ली द्वारा उच्च सांद्रता से निम्न सांद्रता की ओर होता है
(ii) केन्द्रक (Nucleus) : केन्द्रक कोशिका का सबसे बड़ा कोशिकांग है जो कोशिका के अंदर पाया जाता है | गुणसूत्र (chromosomes) कोशिका के केन्द्रक में ही पाया जाता है, जो सिर्फ कोशिका विभाजन के समय ही दिखाई देते हैं |
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केन्द्रक झिल्ली : केन्द्रक के चारों ओर दोहरे परत का एक स्तर होता है जिसे केन्द्रक झिल्ली कहते है | केन्द्रक झिल्ली में छोटे-छोटे छिद्र होते हैं | इन छिद्रों के द्वारा केन्द्रक के अंदर का कोशिकाद्रव्य केन्द्रक के बाहर जा पाता है |  
गुणसूत्र (chromosomes) : गुणसूत्र एक छाडाकार (cilyndrical) संरचना होती है जो कोशिका के केन्द्रक में पाया जाता है, ये कोशिका विभाजन के समय दिखाई देते हैं | गुणसूत्र (क्रोमोसोम) में अनुवांशिक गुण होते हैं जो माता-पिता से DNA (डिऑक्सी राइबो न्यूक्लिक अम्ल) अनु के रूप में अगली संतति में जाते है
·         क्रोमोसोम DNA तथा प्रोटीन के बने होते हैं
·         DNA अणु में कोशिका के निर्माण व् संगठन की सभी आवश्यक सूचनाएँ होती हैं
·         DNA के क्रियात्मक खंड को जीन कहते हैं
·         जो कोशिका, कोशिकायें विभाजन की प्रक्रिया में भाग नहीं लेती हैं उसमें यह DNA क्रोमैटीन पदार्थ के रूप में विद्यमान रहता है
क्रोमैटीन : क्रोमैटीन पदार्थ धागे की तरह की रचनाओं के एक जाल का पिण्ड होता है | जब कभी भी कोशिका विभाजन होने वाली होती है, तब यह क्रोमोसोम में संगठित हो जाता है
कोशिका विभाजन (Cell Division): 
कोशिका विभाजन वह प्रक्रिया है जिसमें एक अकेली कोशिका विभाजित होकर दो नयी कोशिका बनाती है
कोशिकीय जनन में केन्द्रक की भूमिका :
·         कोशिका विभाजन के दौरान केन्द्रक भी दो भागों में विभक्त हो जाता है
·         नयी कोशिका में जनक कोशिका के ही सभी गुण मौजूद रहते है
·         यह कोशिका के विकास एवं परिपक्वन को निर्धारित करता है
·         साथ ही साथ सजीव कोशिका की रासायनिक क्रियाओं को भी निर्देशित करता है
बैक्टीरिया जैसे कुछ जीवों में केन्द्रक झिल्ली नहीं होती है अत: कोशिका का केन्द्रकीय क्षेत्र बहुत कम स्पष्ट होता है | ऐसे अस्पष्ट केन्द्रक क्षेत्र में केवल क्रोमैटीन पदार्थ होता है | ऐसे क्षेत्र को केन्द्रकाय कहते हैं
(A) प्रोकैरियोट जीव : ऐसी जीव जिनकी कोशिकाओं में केन्द्रक झिल्ली नहीं होती उन्हें प्रोकैरियोट जीव कहते है | जैसे - बैक्टीरिया आदि |  
(B) यूकैरियोट जीव : ऐसे जीव जिनकी कोशिकाओं में केन्द्रक झिल्ली होती है उन्हें यूकैरियोट जीव कहते है | जैसे- सभी बहुकोशिकीय जीव

केन्द्रक झिल्ली के उपस्थिति के आधार पर कोशिका दो प्रकार के होते हैं :

(I) प्रोकैरियोटिक कोशिका : जिन कोशिकाओं में केन्द्रक झिल्ली नहीं होती है उन्हें प्रोकैरियोटिक कोशिका कहते है | ऐसी कोशिकाएँ जीवाणुओं में पाई जाती है
(II) यूकैरियोटिक कोशिका : जिन कोशिकाओं में केन्द्रक झिल्ली पाई जाती है उन्हें यूकैरियोटिक कोशिका कहते है | शैवाल, एवं अन्य सभी बहुकोशिक जीवों की कोशिका |
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(iii) कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm) : कोशिका का वह बड़ा क्षेत्र जो कोशिका झिल्ली से घिरा रहता है तथा एक विशेष प्रकार के तरल पदार्थ से भरा रहता है | कोशिका द्रव्य कहलाता है | कोशिका के इसी भाग में कोशिकांग (organelles) पाए जाते हैं |
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कोशिकांग (organells): प्रत्येक कोशिका के जीवद्रव्य में अनेक छोटे- छोटे कोशिका के विशिष्ट घटक पाए जाते है जो कोशिका के लिए विशिष्ट कार्य करते हैं | इन्हें ही कोशिकांग (organelles) अर्थात कोशिका अंगक कहते हैं | जैसे - माइटोकांड्रिया, गाल्जी उपकरण, तारक केंद्र, लाइसोसोम, राइबोसोम, तथा रिक्तिका आदि ये सभी कोशिकांग हैं
जीवद्रव्य (cytoplasm) : कोशिका द्रव्य तथा केन्द्रक दोनों को मिलाकर जीवद्रव्य कहते हैं
सभी कोशिकांग कोशिका के जीवद्रव्य (cytoplasm) में पाए जाते हैं
कोशिकांगों का कार्य:
(i) नए पदार्थ का निर्माण करना
(ii) पदार्थों का निष्कासन करना
(iii) कोशिका के लिए उर्जा संचित करना  
अलग-अलग कार्य करने वाली सभी कोशिकाओं में चाहे वे कोई भी कोशिका क्यों न हो कोशिकांग एक ही प्रकार के होते हैं
झिल्ली की सार्थकता/उपयोगिता :
वायरस में किसी भी प्रकार की झिल्ली नहीं होती और इसलिए इसमें जीवन के गुण तब तक लक्षित नहीं होते जब तक कि यह किसी सजीव के शरीर में प्रविष्ट करके कोशिका कि मशीनरी का उपयोग कर अपना बहुगुणन नहीं कर लेता

सांद्रता के आधार पर विलयन का प्रकार : 

(I)  अल्पपरासरण दाबी विलयन (Hypo-tonic Solution): यदि कोशिका को तनु (dilute) विलयन वाले माध्यम अर्थात जल में शक्कर अथवा नमक की मात्रा कम और जल की मात्र ज्यादा है, में रखा गया है तो जल परासरण विधि द्वारा कोशिका के अंदर चला जायेगा | ऐसे विलयन को अल्पपरासरण दाबी विलयन कहते हैं
इसके परिणामस्वरुप कोशिका फूलने लगेगी
(II) समपरासारी दाबी विलयन (Iso-tonic Solution): यदि कोशिका को ऐसे माध्यम विलयन में रखा जाए जिसमें बाह्य जल की सांद्रता कोशिका में स्थित जल की सांद्रता के ठीक बराबर हो तो कोशिका झिल्ली से जल में कोई शुद्ध गति नहीं होगी | ऐसे विलयन को समपरासारी दाबी विलयन कहते हैं
इसके परिणामस्वरुप कोशिका के माप अथवा आकार में कोई परिवर्तन नहीं आएगा
(III) अतिपरासरण दाबी विलयन (Hyper tonic Solution): यदि कोशिका के बाहर वाला विलयन अंदर के घोल से अधिक सान्द्र है तो जल परासरण द्वारा कोशिका से बाहर आ जायेगा | ऐसे विलयन को अतिपरासरण दाबी विलयन कहते हैं
इसके परिणामस्वरुप कोशिका सिकुड़ जाएगी
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पौधों के मूल द्वारा जल का अवशोषण: एक कोशिकीय अलवणीय जलीय जीवों तथा अधिकांश पादप कोशिकाएँ परासरण द्वारा जल ग्रहण करते हैं | पौधों के मूल द्वारा जल का अवशोषण परासरण का एक उदाहरण है
कोशिका के जीवन में विसरण (Diffusion) का महत्व : 
(i) विसरण जल तथा गैसों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है
(ii) विसरण कोशिका को अपने बाहरी पर्यावरण से पोषण ग्रहण करने में सहायता करता है |
(iii) कोशिका से विभिन्न अणुओं का अंदर आना तथा बाहर निकलना भी विसरण के द्वारा होता है
(iv) पौधों के मूल द्वारा जल का अवशोषण परासरण द्वारा ही होता है

कोशिका भित्ति (Cell wall)कोशिका भित्ति के वल पादप कोशिकाओं में ही पाई जाती है जो कि यह मुख्यत: सेल्युलोज (Cellulose) की बनी होती है | यह पौधों को संरचनात्मक दृढ़ता प्रदान करता है
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सेल्युलोज (Cellulose): यह एक विशेष प्रकार की जटिल कर्बोहाइड्रेट होती है जो पौधों में ही पाई जाती है तथा यह पौधों को संरचनात्मक दृढ़ता प्रदान करता है | सेल्युलोज का पाचन सभी शाकाहारी जीव आसानी से कर पाते है जबकि मनुष्य की आंत (intestine) इसका पाचन नहीं कर पाता है | ऐसा इसलिए है कि मनुष्य की आंत अन्य शाकाहारी जीवों की अपेक्षा छोटी होती है
जीवद्रव्य कुंचन (Plasmolysis): जब किसी पादप कोशिका में परासरण द्वारा पानी की हानि होती है तो कोशिका झिल्ली सहित आन्तरिक पदार्थ संकुचित हो जाती हैं | इस घटना को जीवद्रव्य कुंचन कहते हैं
पादप कोशिकाएँ परिवर्तनीय माध्यम को जंतु कोशिका की अपेक्षा आसानी से सहन कर सकती है | कैसे ? 
कोशिका भित्ति पौधों, कवक तथा बैक्टीरिया की कोशिकाओं को अपेक्षाकृत कम तनु विलयन अर्थात अल्पपरासरण दाबी विलयन में बिना फटे बनाए रखती है | ऐसे माध्यम से कोशिका परासरण विधि द्वारा पानी लेती है | कोशिका फुल जाती है और कोशिका भित्ति के ऊपर दबाव डालती है | कोशिका भित्ति भी फूली हुई कोशिका के प्रति सामान रूप से दबाव डालती है | कोशिका भित्ति के कारण पादप कोशिकाएँ परिवर्तनीय माध्यम को जंतु कोशिका की अपेक्षा आसानी से सहन कर सकती है |

कोशिकांग (Cell Organelles) : 

1. अंतर्द्रव्यी जालिका (Endoplasmic Reticulum) (ER):

अंतर्द्रव्यी जालिका झिल्ली युक्त नलिकाओं तथा शीट का बहुत बड़ा तंत्र है | ये लंबी नलिका अथवा गोल या आयताकार थैलों (sac) कि तरह दिखाई देती हैं अंतर्द्रव्यी जालिका की रचना भी प्लाज्मा झिल्ली के समरूप होती है
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अंतर्द्रव्यी जालिका दो प्रकार कि होती है :
(I) खुरदरी अंतर्द्रव्यी जालिका (RER) :
    (a) RER तैयार प्रोटीन को ER के द्वारा कोशिका के अन्य भागों में भेज देता है
    (b) इसमें राइबोसोम उपस्थित रहता है
(II) चिकनी अंतर्द्रव्यी जालिका (SER) : 
     (a) SER वसा अथवा लिपिड अणुओं के बनाने में सहायता करती है
     (b) इसमें राइबोसोम उपस्थित रहता है
अंतर्द्रव्यी जालिका का कार्य : 
(i)  यह कोशिकाद्रव्य तथा केन्द्रक के मध्य जालिका तंत्र (network system) का निर्माण करता है
(ii) यह कोशिकाद्रव्य तथा केन्द्रक के मध्य प्रोटीन के परिवहन के लिए नलिका के रूप में कार्य करता है
(iii) ER कोशिका की कुछ जैव रासायनिक क्रियाओं के लिए कोशिकाद्रव्यी ढाँचे का कार्य करता है |  
(iv) यकृत कोशिकाओं में SER विष एवं दवाओं के विषाक्त प्रभाव को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है
(v) SER वसा अथवा लिपिड अणुओं के बनाने में सहायता करती है
झिल्ली जीवात-जनन (membrane bio-genesis): कुछ प्रोटीन तथा वसा कोशिका झिल्ली को बनाने में सहायता करते हैं | इस प्रक्रिया को झिल्ली जीवात-जनन (membrane bio-genesis) कहते हैं |

2. गाल्जी उपकरण/बॉडी (Golgi apparatus) : 

यह झिल्ली युक्त पुटिका है जो एक दुसरे के ऊपर समांतर रूप से सजी रहती हैं | जिन्हें कुण्डिका कहते है |
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गाल्जी उपकरण का कार्य : 
(i) यह ER की झिल्लियों से जुड़कर जटिल झिल्ली तंत्र के दुसरे भाग को बनाती है
(ii) ER में संश्लेषित पदार्थों के लिए पैकेजिंग का कार्य करता है
(iii) गोल्जी उपकरण में सामान्य शर्करा से जटिल शर्करा बनती है
(iv) इसके द्वारा लाइसोसोम को भी बनाया जाता है
ब्लैक रिएक्शन : कैमिलो गाल्जी ने अकेली तंत्रिका तथा कोशिका संरचनाओं को अभिरंगित करने की क्रन्तिकारी विधि प्रदान की | इस विधि को ब्लैक रिएक्शन के नाम से जाना जाता है | इस विधि में उन्होंने सिल्वर नाइट्रेट के तनु घोल का उपयोग किया था और विशेषत: यह कोशिकाओं कि कोमल शाखाओं कि प्रक्रियाओं का मार्ग पता लगाने में महत्वपूर्ण था
3. राइबोसोम (Ribosome):
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राइबोसोम कोशिका द्रव्य में मुक्त अवस्था में पाई जाने वाली गोल आकृति कि संरचना होती है | ये कोशिका द्रव्य में मुक्त रूप से पाई जा सकती है अथवा अंतर्द्रव्य जालिका (ER) से जुडी हो सकती हैं | राइबोसोम को कोशिका का प्रोटीन-फैक्ट्री भी कहा जाता है, क्योंकि यह प्रोटीन बनाता है
राइबोसोम का कार्य: 
(i) यह RNA (Ribonucleic-acid) का बना होता है
(ii) यह एमिनो-अम्ल से प्रोटीन का निर्माण करता है
(iii) ये कोशिका के जैव-रासायनिक क्रिया-कलापों के लिए सतह प्रदान करता है

4. लाइसोसोम (Lysosomes): 
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लाइसोसोम कोशिका का अपशिष्ट निपटाने वाला तंत्र है | यह झिल्ली से घिरी हुई संरचना है | लाइसोसोम बाहरी पदार्थों के साथ -साथ कोशिकांगों के टूटे-फूटे भागों को पाचित करके साफ करता है |लाइसोसोम में बहुत शक्तिशाली पाचनकारी एंजाइम होते है जो सभी कार्बनिक पदार्थों को तोड़ सकने में सक्षम है |  
लाइसोसोम एक आत्मघाती थैली :
 कोशिकीय चयापचय (Metabolism) में व्यवधान के कारण जब कोशिका क्षतिग्रस्त या मृत हो जाती है, to लाइसोसोम फट जाते हैं और इनके शक्तिशाली एंजाइम अपनी ही कोशिकाओं को पाचित कर देते हैं इसलिए लाइसोसोम को आत्मघाती (sucidal) बैग कहते है
लाइसोसोम का कार्य: 
(i) यह कोशिका के अपशिष्टों को पाचित कर कोशिका को साफ रखता है |
(ii) इसके शक्तिशाली एंजाइमस कोशिकांगो के अलावा जीवाणु, भोजन एवं कृमियों का पाचन करती है |
(iii) यह मृत एवं क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को हटाता है |  

5. माइटोकोंड्रिया (Mitochondria):

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माइटोकोंड्रिया दोहरी झिल्ली वाली कोशिकांग है बाहरी झिल्ली छिद्रित होती है एवं भीतरी झिल्ली बहुत अधिक वलित (rounded) होती है | इसमें उसका अपना DNA तथा राइबोसोम होते हैं | अत: माइटोकोंड्रिया अपना कुछ प्रोटीन स्वयं बनाते हैं | इसलिए माइटोकोंड्रिया अदभुत अंगक है |  
माइटोकोंड्रिया कोशिका का बिजली घर है : 
जीवन के लिए आवश्यक विभिन्न रासायनिक क्रियाओं को करने के लिए माइटोकोंड्रिया ATP (एडिनोसिन ट्राई फॉस्फेट) के रूप में ऊर्जा प्रदान करते हैं | ATP कोशिका कि वह ऊर्जा है जिसका निर्माण एवं संचयन माइटोकोंड्रिया में होता है | इस ऊर्जा का उपयोग नए रासायनिक यौगिकों को बनाने में तथा यांत्रिक कार्यों के लिए शरीर अथवा कोशिका द्वारा होता है | चूँकि ATP जैसे कोशिकीय ऊर्जा का निर्माण एवं संचयन माइटोकोंड्रिया में होता है इसलिए इसे कोशिका का बिजली घर कहते है
माइटोकोंड्रिया का कार्य:
(i) यह ATP के रूप में ऊर्जा प्रदान करता है
(ii) इसमें कोशिकीय श्वसन के लिए एंजाइम होते हैं
(iii) यह अपना कुछ प्रोटीन स्वयं बनाता है
(iv) कोशिकीय ऊर्जा का संचयन एवं निर्माण माइटोकोंड्रिया के द्वारा ही होता है
6. प्लैस्टिड (Plastids):  
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प्लैस्टिड केवल पादप कोशिकाओं में स्थित होते है प्लैस्टिड की भीतरी रचना में बहुत-सी झिल्ली वाली परतें होती है जो स्ट्रोमा में स्थित होती है प्लैस्टिड बाह्य रचना में माइटोकोंड्रिया कि तरह होते हैं माइटोकोंड्रिया कि तरह प्लैस्टिड में भी अपना DNA तथा राइबोसोम होते है
प्लैस्टिड तीन प्रकार के होते हैं
(I) क्रोमोप्लास्ट (रंगीन प्लैस्टिड) : इसमें क्लोरोफिल नहीं पाया जाता तथा यह प्रकाश संश्लेषण में भाग नहीं लेता है | इनका प्रमुख कार्य पौधे को सुन्दर बनाना है | यह मुख्यत: फलों एवं फूलों कि पंखुड़ियों में पाया जाता है
(II) ल्यूकोप्लास्ट (श्वेत एवं रंगहीन प्लैस्टिड) : ल्यूकोप्लास्ट प्राथमिक रूप से अंगक है जिसमें स्टार्च, तेल तथा प्रोटीन जैसे पदार्थ संचित रहते हैं |  यह पौधों के जड़ों एवं उन भागों में पाया जाता है जहाँ प्रकाश संश्लेषण कि क्रिया नहीं होती है, क्योंकि इसमें हरा वर्णक क्लोरोफिल नहीं पाया जाता है
(III) क्लोरोप्लास्ट : जिस प्लैस्टिड में क्लोरोफिल वर्णक (pigment) होता है उसे क्लोरोप्लास्ट कहते है | क्लोरोप्लास्ट में क्लोरोफिल के अतिरिक्त विभिन्न पीले अथवा नारंगी रंग के वर्णक भी होते है | यह प्रकाश संश्लेषण के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है
क्लोरोफिल : पौधे में पाए जाने वाले हरे वर्णक को क्लोरोफिल कहते हैं | जो प्रकाश संश्लेषण में भाग लेता है |  
प्लैस्टिड का कार्य :
(i) प्लैस्टिड के विभिन्न प्रकारों के कारण ही पौधों के विभिन्न भागों में विभिन्न रंग होते है
(ii) प्रकाश संश्लेषण की क्रिया हरे वर्णक प्लैस्टिड क्लोरोफिल कि उपस्थिति में होती है |
(iii) ल्यूकोप्लास्ट मंड (स्टार्च), चर्बी और प्रोटीन को संचित उत्पाद के रूप में संचय करता है |   

रसधानियाँ (Vacuoles): 

रसधानियाँ ठोस अथवा तरल पदार्थों कि संग्राहक थैलियाँ हैं | जंतु कोशिकाओं में रसधानियाँ छोटी होती हैं जबकि पादप कोशिकाओं में रासधानियाँ बहुत बड़ी होती है | कुछ पौधों कि कोशिकाओं कि केंद्रीय रसधानी की माप कोशिका के आयतन का 50% से 90 तक होता है |  
पादप कोशिकाओं कि रसधानियाँ कोशिका द्रव्य से भरी रहती हैं जो कोशिकाओं को स्फीति एवं कठोरता प्रदान करती हैं
रसधानियाँ (Vacuoles) के कार्य : 
(i) ये कोशिकाओं को स्फीति एवं कठोरता प्रदान करती हैं
(ii) पौधों के लिए आवश्यक पदार्थ जैसे अमीनो अम्ल, शर्करा, विभिन्न कार्बनिक अम्ल तथा प्रोटीन आदि रसधानियों में ही संचित रहता है |
(iii) कुछ एक कोशिकीय जीवों में विशिष्ट रसधानियाँ अतितिक्त जल एवं अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने में सहायता करता है |